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श्री गणेशाय नमः


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Wednesday, July 29, 2020

Hindi Kavita जीवन की बस आस तुम्ही हो

मन वीणा के तार बजा दो।
 जीवन के संगीत तुम्ही हो।
 तुम बिन कैसे जी पाऊंगा?
 मेरे तो मनमीत तुम्ही हो।

            जीवन मेरा सुखा मधुवन।
             जीवन का मधुमास तुम्ही हो।
             गंधहीन एक शुष्क पुष्प मैं।
              जीवन का सुन्दर बास तुम्ही हो।

 निराधार है जीवन मेरा।
 जीवन का आधार तुम्ही हो।
 इस पागल दीवाना के,
 जीवन का पहला प्यार तुम्ही हो।

                      डोल रही है जीवन नैया।
                       इसके तो पतवार तुम्ही हो।
                        जीवन मेरा सूखी नदिया,
                        मेरे पारावार तुम्ही हो।

 मिले बहुत पथ में लकिन,
 मेरी तो बस प्यास तुम्ही हो।
 अपना सब कुछ आज लुटा दूं।
 जीवन की बस आस तुम्ही हो ।


Thursday, September 9, 2010

Poem: Nanhe Kopal, कविता: नन्हे कोपल

कविता: नन्हे कोपल 

नन्हे कोपल पीपल के 
अलसाये इठलाये से 
उग आये हैं टहनी पे 
देखो तो शर्माए से !

सूरज की पीली किरणों का 
करें सामना ये डट के  
चले बसंती मस्त पवन जब 
लहराए ये हौले हौले से ! 

निस दिन बढ़ते रहते 
जैसे हों मद मस्त गज 
जड़ से जुड़े रहे हमेशा 
ले माथे पे धूलि रज !

एक दिन बन जायेगा देखो 
कोपल का इक नव इतिहास 
झंझावत से सदा जूझते 
नन्हे कोपल को शाबाश  !

लेखक: रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी

Thursday, May 13, 2010

हिंदी कविता: ग्रीष्म (Hindi Poem: Greeshm )

कविता: ग्रीष्म

आज गली से निकल रहा है 
सूरज अपने आप 
दहक रही है धरती सारी 
प्राणी करे संताप 

दावानल सी बहती ऊष्मा 
करे देह पर तीष्ण प्रहार 
पत्ते भी अब मुरझाये 
फूटे नभ से नित अंगार

आकुल व्याकुल सारे जंतु 
मानव मन मुरझाया है 
तपे रेत सी कोमल धरती  
हर्षित मन झुलसाया है  

शीतल जल और मलय पवन  
करती है जीवन संचार  
प्रखर रश्मियाँ मंद पड़े तो  
सहज बने जीवन व्यापार
 
लेखक: रवि प्रकाश केशरी: वाराणसी

Monday, April 5, 2010

Poem: Chehra- कविता: चेहरा

कविता: चेहरा 
कुछ चेहरे है खिले हुए
कुछ चेहरे है लघु उदास
हर चेहरा एक राज छुपाये
हर चेहरा बनता है हर चेहरा खास


कभी बच्चे सी चंचलता
कभी सिंह सा क्रोध लिए
गौर से देखो हर चेहरे को
जो जीवन का सन्देश लिए

पल में हँसता पल में रोता
हर चेहरा अलबेला है
दिल को देखो चेहरा छोडो
इसमें बड़ा झमेला है


-- रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी 

Friday, March 19, 2010

जब सच्ची हों दिल कि नियत

क्षणिकाएं...

तबियत
जब सच्ची हों 
दिल कि नियत 
तब सुधरेगी 
इंसान की तबियत 


ज़िन्दगी 
हर बन्दे से
हों जब बंदगी 
तब हों जाती है 
रब सी ज़िन्दगी 

सौंदर्य 
हों जब मन में
सागर सा धैर्य 
निखरे तब मानव 
का सौंदर्य 

तृष्णा 
मन व्यथित 
तन में तृष्णा
निष्कपट से करो ध्यान 
श्री हरी कृष्णा

लेखक- रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी

Saturday, January 2, 2010

कविता : नया साल

कविता : नया साल
नए साल में चली है देखो 
देखो चली इक नयी बयार,  
नए साल में नयी सौगातें 
लेके आया ख़ुशी अपार!

कुमकुम अक्षत रोली से 
कर लो तुम इसका सिंगार,
होंगी सब आशाएं पूरी 
लेगा करवट जीवन इकबार!

मन उल्लासित तन है पुलकित 
जग में छाया एक खुमार, 
नयी सुबह है नए साल में 
छाई देखो ख़ुशी अपार!


लेखक : रवि प्रकाश केशरी 
वाराणसी


Friday, December 4, 2009

कविता: मंदिर मस्जिद

कविता: मंदिर मस्जिद 

मंदिर के मुंडेर पर
बैठा एक कबूतर 
ताड़ रहा था सामने 
मस्जिद की छत को . 

मंदिर से मस्जिद की 
दूरी थी बस दस कदम 
एक तो सूरज की तपिश 
ऊपर से बाजू भी बेदम 

इन हालातों मै कुछ यूँ हुआ 
सामने से नन्हे फरीद ने 
मंदिर के छत की ओर कदम बढाए 
और कबूतर को हाथों में लिया. 

नन्हे फरीद ने धर्म की दीवार को 
मानवता से तोड़ दिया 
और कबूतर पर पास पड़े 
गंगाजल के कमंडल को उड़ेल दिया. 
 
--लेखक: रवि प्रकाश  केशरी 
वाराणसी 


Tuesday, May 26, 2009

कविता: तकलीफ

बस इतनी सी तकलीफ
मेरे दिल में मौजूद है
मेरे दिल तोड़ने वाला शख्स का
मेरे दिल में वजूद है !

अब तन्हाइयों बिना
जीने से डर लगता है
हर चेहरे में उसका बस
बस उसका अक्स दिखताहै !

खामोश लब झुकी निगाहें
इस बात का करती बयां है
बिना उसके मेरे लिए
क्या जमीं क्या आसमा !


-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Tuesday, May 19, 2009

कविता : चुनाव पर्व

पाँच साल मे एक बार
आता यह त्यौहार
जनता के आगे हाथ जोड़ते
सत्ता के ठेकेदार

सत्ता के ठेकेदार
मिल जुल कर बतियाते हैं
गर गलती से जीत गए
तो मिलकर सब चट कर जाते हैं

कहे केशरी इन लोगों की
नही कोई जमात
सत्ता मे आते ही मारे
जनता को दो लात

- सवी प्रकाश केशरी
वाराणसी

Sunday, April 5, 2009

कविता: वोट तंत्र

वोट तंत्र के दौर में
कितने हुए बर्बाद
जली झोपड़ी पब्लिक की
महल हुए आबाद!

दिन में जो बतियाते थे
हर वादे पर हामी भरते थे
वो शाम ढले छुप जाते है
अपनों को गैर बताते है !

नित बदलते मौसम में
बदला नेताओं का चोला
पहले पहनते थे खादी
अब साथ में रखते हैं झोला!

गर चाहो अपनी खुद्दारी
तो दूर भगाओ खद्दरधारी
सच्चे अच्छे को देकर वोट
दिखाओ अपनी समझदारी !
लेखक -रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Saturday, March 14, 2009

एक अजन्मी बेटी की चिट्ठी माता पिता और समाज के नाम

चार माह कि बच्ची थी। इस इंतज़ार मे कि इस दुनिया मे आएगी, खूब पढेगी लिखेगी और अपने माता पिता का नाम रोशन करेगी। अनेकों रिश्तों को अपने भीतर समेटे हुए एक नई दुनिया मे आने के उल्लास से भरी हुई थी। पहले बेटी का फ़र्ज़ निभाएगी और फ़िर एक पत्नी का और फ़िर एक माँ का। रक्षाबंधन पर अपने प्यारे भाई कि कलाई पर राखी बांधेगी... पर उसे क्या पता था कि बाहर क्या हो रहा है। उसके माँ बाप और परिवार वालों को तो सिर्फ़ बेटे का इंतज़ार था। मशीनों के ज़रिये चुपके से उसकी जांच पड़ताल कराई जा रही थी और यह जानकर कि वह एक कन्या है उसे मारने कि तैयारी चल रही थी। पर न जाने कैसे उसे भनक लग गई और आँख मे आंसू लिए फ़िर उसने मरते मरते लिखी एक चिट्ठी......

प्यारे मम्मी पापा और प्यारे समाज
क्यूँ मार दिया मुझे आपने
इस दुनिया मे आने से पहले
क्यूँ मार दिया मुझे आपने
यह जानकर कि मै एक लड़की हूँ?
क्या यह सोचकर कि
बनूँगी आपके जीवन पर एक बोझ
जिसे ढोना पड़ेगा मेरी शादी तक
मुझे खिलाओगे पिलाओगे
पढाओगे लिखाओगे और एक दिन
करना पड़ेगा विदा
भेजना पड़ेगा परदेस
बांधना पड़ेगा मुझे किसी खूटे से
एक निरीह गाय की तरह
क्या इस डर से मार दिया मुझे आपने
इस दुनिया मे आने से पहले?
कि जुटाना पड़ेगा दहेज़
विवाह मे जाने होगा कितना दहेज़
जुड़ पाया दहेज़ तो गिरवी रखनी होगी
जमा पूँजी, मकान और जीवन,
क्या इस वजह से मार दिया मुझे
अरे अगर लगता है बेटी एक बोझ
तो देखो एक बार अपनी माँ की तरफ़
वो भी थी किसी कि बेटी
और अगर वोह भी मार दी गई होती
पैदा होने से पहले तो
नही होता आपका कोई अस्तित्व
किसी कि बेटी के कारण ही
है आज है आप लोगों का जीवन
और आज हो गई है नफरत
आपको अपनी ही बेटी से
क्या इसी लिए मार दिया आपने
मुझे इस दुनिया मे आने से पहले?
मेरे मम्मी पापा और मेरे प्यारे समाज
अगर आप सब ऐसे ही मारते रहे
ढूंढ ढूंढ कर बेटिओं को
इस दुनिया मे आने से पहले
तो कैसे आयेंगे भविष्य मे बेटे?
क्यूंकि बेटा भी तो जानती है माँ
और बेटी ही तो बनती है एक माँ
काश आप मुझे मरने से बचा लेते
मुझे आने देते इस संसार मे
मै नही बनती आप पर कोई बोझ
मै पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी,
और ठुकरा सकती थी दहेज़ लोभी वर को
मै अपनी आत्म शक्ति और आत्मनिर्भरता से
लड़ लेती इस संसार से
मै भी उड़ना चाहती थी
स्वछंद आकाश मे
पर आपने छीन ली मुझसे
मेरी इच्छाएं और आकांक्षाएं
और मर जाने दिया मुझे अपने स्वार्थ मे
आपके इस अपराध के लिए
मै आपको कभी माफ़ नही कर सकती
कभी नही , कभी नही , कभी नही
----आपकी अजन्मी बेटी

Saturday, March 7, 2009

कविता: नारी {८ मार्च नारी दिवस विशेष}

वर्षो से जकड़ी जंजीरे
तोड़ दे सरे बंधन
नित आगे बढ़ने से तेरा
होगा हरदम अभिनन्दन !
घर की ऊँची दीवारों में
तू क्यों आंसू रोती है
दिया ईश ने तुझको शक्ति
फ़िर क्यो अबला बनती है !
तू सीता है तू सावित्री
तू इंदिरा तू लक्ष्मीबाई
तेरे चरणों में हरदम
दुनिया शीश झुकाती आई !
तू शिव की शक्ति है
और ईश की माया
तेरे को जिसने दुत्कारा
वो पीछे पछताया !
उठ जा तन जा हो तैयार
जग से ले लोहा एक बार
तेरे बुलंद हौसले से होगी
होगी तेरी विजय हर बार !
-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी {९८८९६८५१६८}

Sunday, March 1, 2009

कविता : मस्ती, प्रेम, रंग, गुझिया का त्यौहार "होली"

बस कुछ ही दिन शेष है, रंगों के प्यारे के त्यौहार मे। रंग, पिचकारी, गुझिया, मस्ती का त्यौहार होली !!
प्रस्तुत है रवि केशरी जी कि कविता होली के सन्दर्भ मे-

रंग फुहारों से हर ओर

भींग रहा है घर आगंन

फागुन के ठंडे बयार से

थिरक रहा हर मानव मन !




लाल गुलाबी नीली पीली

खुशियाँ रंगों जैसे छायीं

ढोल मजीरे की तानों पर

बजे उमंगों की शहनाई !




गुझिया पापड़ पकवानों के

घर घर में लगते मेले

खाते गाते धूम मचाते

मन में खुशियों के फूल खिले !




रंग बिरंगी दुनिया में

हर कोई लगता एक समान

भेदभाव को दूर भागता

रंगों का यह मंगलगान !




पिचकारी के बौछारों से

चारो ओर छाई उमंग

खुशियों के सागर में डूबी

दुनिया में फैली प्रेम तरंग !



- रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Tuesday, January 20, 2009

कविता: दशा

गहन तिमिर है
नील गगन में
सूरज का कुछ पता नहीं
मंजिल ख़ुद ही ढूंढ़ रही है
राहों का कुछ पता नहीं !

सागर सी विस्तृत आशाएं
नया धरातल खोज रही है
मीठे जल के ढेरों उदगम
प्यासे का पता पूछ रही है !

मन है विचलित
तन अकुलाये
भ्रमित हो रही दृष्टी है
नव निर्माणित सपनों पर
होती ओलावृष्टि है !

तनिक नहीं आराम जिया में
हर पल घबराया रहता है
अपनों में बेगानों को प्
हर दम पगलाया रहता है !

- रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Sunday, January 11, 2009

बाल कविता: चुन्नू चला स्कूल

नटखट गोलमटोल सा
लिए हाथ में रुल
पीठ पर लादे छोटा बस्ता
चुन्नू चला स्कूल!

एक हाथ में थर्मस थामे
दूजे में लिए टाफी
ब्रेड जैम बिस्किट टिफिन में
चुन्नू के लिए काफी!

दिन भर बिता स्कूल में
होती रही बस मस्ती
घर लौटे चुन्नू को देख
मम्मी उसकी हंसती
-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Monday, January 5, 2009

कविता: पतंग

ठुम्मक ठुम्मक
चले हवा में
मेरी लाली लाल
पतंग


सतरंगे डोरे से
बांधी
आसमान में
नाचे पतंग


फर फर उड़ती
तितली जैसी
इठलाये बलखाये
पतंग


मन की खुशियाँ
नभ से ऊँची
उम्मीदों की
सोच पतंग


रवि प्रकाश केशरी,
वाराणसी

Sunday, December 28, 2008

कविता: नया विहान

देखो नया विहान हो गया
चंदा का अवसान हो गया
सूरज चमका नई चमक से
नए साल का निर्माण हो गया !


बढ़ते कटुता के दौर में
लोगों का इमान खो गया
बची खुची मानवता से खुश
फ़िर से देखो इंसान हो गया !


प्रकृति के सुंदर फूलों से
सृष्टी का परिधान हो गया
मिल बैठ कर बतियाने से
संकट का समाधान हो गया !


नव वर्ष की शुभ बेला में
देखो मंगलगान हो गया
हँसी खुशी के नए दौर में
मानव पुनः महान हो गया !

-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Wednesday, December 17, 2008

कविता: सर्दी

सर्दी की कुनकुनी धूप
छत पर उतर आई है
कुहासे के चादर से ढकी
अलसाई सुबह शरमाई है !
पंखुडी पर टिकी ओस
जमीं से मिलने को तैयार है
अधूरे ख्वाबों की राह में
उम्मीद की किरण ज्यादा है !
सर्द हवा हौले -हौले
मन में सिहरन फैलाती है
कुहासे की तरह अपना
विस्तार फैलाती है


-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी


कविता: संस्कार

हर व्यक्ति का अपना
आसमान होता है
चलने के लिए ज़मीन
पर छूने के लिए वह
आसमान ही चाहता है
आसमान ऊंचा होता है
व्यक्ति बौना ही रह जाता है
आकाश की ऊँचाई को छूना
हर एक के लिए सम्भव भी कहाँ होता है,
किंतु व्यक्ति होता है अपने संस्कारों का दास
इसलिए अपनी बुनियादी पहचान पाने के लिए
वह शून्य मै छलाँग लगाता है
आकाश की बुलंदी को छूकर
अपने पाँव धरती पर और
मजबूती से जमा लेता है

लेखक: नवीन केसरवानी
नॉएडा

Friday, December 12, 2008

बाल कविता: आशा

आशा चली स्कूल
पढ़ने बढ़ने के वास्ते
अक्षर अक्षर जोड़ने से
खुलेंगे सफलता के रास्ते

लिए हाथ में कलम
बढेगी हरदम आगे
पढने लिखने से बदलेगी
जीवन की हर परिभाषा

ज्ञान भरी किताबों में
छुपें हैं जीवन के संदेश
पढ़ने लिखने से आशा
घूम सकेगी देश विदेश

-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

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