कविता: ग्रीष्म
आज गली से निकल रहा है
सूरज अपने आप
दहक रही है धरती सारी
प्राणी करे संताप
दावानल सी बहती ऊष्मा
करे देह पर तीष्ण प्रहार
पत्ते भी अब मुरझाये
फूटे नभ से नित अंगार
आकुल व्याकुल सारे जंतु
मानव मन मुरझाया है
तपे रेत सी कोमल धरती
हर्षित मन झुलसाया है
शीतल जल और मलय पवन
करती है जीवन संचार
प्रखर रश्मियाँ मंद पड़े तो
सहज बने जीवन व्यापार
लेखक: रवि प्रकाश केशरी: वाराणसी
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