वर्षो से जकड़ी जंजीरे
तोड़ दे सरे बंधन
नित आगे बढ़ने से तेरा
होगा हरदम अभिनन्दन !
घर की ऊँची दीवारों में
तू क्यों आंसू रोती है
दिया ईश ने तुझको शक्ति
फ़िर क्यो अबला बनती है !
तू सीता है तू सावित्री
तू इंदिरा तू लक्ष्मीबाई
तेरे चरणों में हरदम
दुनिया शीश झुकाती आई !
तू शिव की शक्ति है
और ईश की माया
तेरे को जिसने दुत्कारा
वो पीछे पछताया !
उठ जा तन जा हो तैयार
जग से ले लोहा एक बार
तेरे बुलंद हौसले से होगी
होगी तेरी विजय हर बार !
-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी {९८८९६८५१६८}
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