वोट तंत्र के दौर में
कितने हुए बर्बाद
जली झोपड़ी पब्लिक की
महल हुए आबाद!
कितने हुए बर्बाद
जली झोपड़ी पब्लिक की
महल हुए आबाद!
दिन में जो बतियाते थे
हर वादे पर हामी भरते थे
वो शाम ढले छुप जाते है
अपनों को गैर बताते है !
हर वादे पर हामी भरते थे
वो शाम ढले छुप जाते है
अपनों को गैर बताते है !
नित बदलते मौसम में
बदला नेताओं का चोला
पहले पहनते थे खादी
अब साथ में रखते हैं झोला!
बदला नेताओं का चोला
पहले पहनते थे खादी
अब साथ में रखते हैं झोला!
गर चाहो अपनी खुद्दारी
तो दूर भगाओ खद्दरधारी
सच्चे अच्छे को देकर वोट
दिखाओ अपनी समझदारी !
तो दूर भगाओ खद्दरधारी
सच्चे अच्छे को देकर वोट
दिखाओ अपनी समझदारी !
लेखक -रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी
वाराणसी
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