क्षणिकाएं...
तबियत
जब सच्ची हों
दिल कि नियत
तब सुधरेगी
इंसान की तबियत
ज़िन्दगी
हर बन्दे से
हों जब बंदगी
तब हों जाती है
रब सी ज़िन्दगी
सौंदर्य
हों जब मन में
सागर सा धैर्य
निखरे तब मानव
का सौंदर्य
तृष्णा
मन व्यथित
तन में तृष्णा
निष्कपट से करो ध्यान
श्री हरी कृष्णा
लेखक- रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी
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