हर व्यक्ति का अपना
आसमान होता है
चलने के लिए ज़मीन
पर छूने के लिए वह
आसमान ही चाहता है
आसमान ऊंचा होता है
व्यक्ति बौना ही रह जाता है
आकाश की ऊँचाई को छूना
हर एक के लिए सम्भव भी कहाँ होता है,
किंतु व्यक्ति होता है अपने संस्कारों का दास
इसलिए अपनी बुनियादी पहचान पाने के लिए
वह शून्य मै छलाँग लगाता है
आकाश की बुलंदी को छूकर
अपने पाँव धरती पर और
मजबूती से जमा लेता है।
लेखक: नवीन केसरवानी
नॉएडा
आसमान होता है
चलने के लिए ज़मीन
पर छूने के लिए वह
आसमान ही चाहता है
आसमान ऊंचा होता है
व्यक्ति बौना ही रह जाता है
आकाश की ऊँचाई को छूना
हर एक के लिए सम्भव भी कहाँ होता है,
किंतु व्यक्ति होता है अपने संस्कारों का दास
इसलिए अपनी बुनियादी पहचान पाने के लिए
वह शून्य मै छलाँग लगाता है
आकाश की बुलंदी को छूकर
अपने पाँव धरती पर और
मजबूती से जमा लेता है।
लेखक: नवीन केसरवानी
नॉएडा
1 comment:
hello navin,
so nice poem.congrates for creation. keep it up.
-ravi prakash keshari
rpkeshari@gmail.com
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