Welcome To Kesarwani samaj Online Magazine केसरवानी ऑनलाइन पत्रिका में आपका हार्दिक स्वागत है पत्रिका के सभी पाठकों से अनुरोध है की करोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए सभी सावधानियां बरतें एवं अनावश्यक घर से बाहर ना निकले! अपने हाथ धोते रहे और मास्क का प्रयोग अवश्य करें
श्री गणेशाय नमः


Showing posts with label कवितायें. Show all posts
Showing posts with label कवितायें. Show all posts

Sunday, December 7, 2008

कविता: आतंक के ज़ख्म

आतंक के जख्म अब तक हरे है
हम अभी तक गुस्से से भरे है
ताज का हमला सीधे
दिल पर हुआ है
आतंक कब किसी मजहब से जुडा है

सीने को चीरती गोली
अब तक नसों में फंसी है
देख हमारी बुजदिली
दुनिया हम पर हँसी है
आतंक के जख्म अब तक हरे है
हम अब भी गुस्से से भरे है

कब तक हम अच्छाई
की माला जपेंगे
यह सच से डरे लोग
हमें यूं ही बर्बाद करेंगे
आतंक के जख्म अब तक हरे है
हम अभी तक गुस्से से भरे है

अगर अब भी हम
नींद से नही उठेंगे
तो ये यकीनन हमें
हाशिये पर कर देंगे
आतंक के जख्म अब तक हरे है
हम अभी तक गुस्से से भरे है

आओ हम भारत के
जख्म को मरहम लगायें
चाँद आंसू शहीदों और
नफरत नेता वास्ते जगाये
क्यों की
आतंक के जख्म अब तक हरे है
हम अभी तक गुस्से से भरे है


लेखक- रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Saturday, November 29, 2008

विदाई गीत: माता पिता और परिवार के हृदयोदगार

विदाई कि घड़ी है , बेटी विदा हो रही है, जा रही है अपने पिया के घर। उसका घर आँगन अब पराया हो रहा है। सबकी आंखों में आँसू है। ऐसे विदाई के अवसर पर बेटी के परिवार के हृदयोदगार निम्न पंक्तियों मै देखें :-

प्यारी बहन सौंपती हूँ मै अपना तुम्हे खजाना
है जिस पर अधिकार तुम्हारे बेटे का मन माना
मांस और हड्डी तन मेरा है यह बेटी प्यारी।
करो इसे स्वीकार हुई, यह सब भाँती तुम्हारी

पूजे कई देवता हमने तब इसको है पाया।
प्राण समान पाल कर इसको इतना बड़ा बनाया॥
आत्मा है यह आज हमारी हमसे बिछड़ रही है
समझती हूँ तो भी जी को भरता धीर नहीं है॥

बहन ढिठाई माता की, तुम मन में नेक धरियो।
इस कोमल बिरवा कि रक्षा बड़े चाव से करियो॥
है यह नम्र मेमने से भी भीरु मृग से भी बढ़कर।
बड़ी बात अरु चितवन से यह काँप जाती है थर थर

इसकी मंद हंसी से मेरा मन अति सुख पाता था
कठिन घाव भी दुःख का जिससे अच्छा हो जाता था
बहिन तुम्हें भी यह सब बातें जान पड़ेंगी आगे।
अपने नयन रखोगे इस पर जब तुम नित्य अनुरागे

मात पिताओं बुआ लाडली भैया कि अति प्यारी
बुआ और बहनों स्वजनों की हर दम फब्ती प्यारी
इसकी स्नेह भरी चितवन से श्रद्धा श्रोत्र बहाते
इसकी प्रेम भरी वाणी से गदगद स्नेह नहाते

मात-पिता भाई बहनों कि इतनी ही है बिनती
अपने बेटे में तुम करियो इस बेटी कि गिनती
आशा ही है नही किंतु मन धीरज धार रहा है
लख कर इसको विमुख आँख से अंसुवन धार बहा है

प्रस्तुति : आकांक्षा केसरवानी, लखनऊ

Sunday, November 23, 2008

रवि प्रकाश केशरी कि कविता : आज

आज कुछ नया सा है
बाजुए फड़क रहीं हैं
माहौल बदला सा है
फिजायें महक रही हैं

आसमान अब तो देखो
कदमों तले पड़ा है
कल जिसकी पाने की न हस्ती थी
आज हासिल होने पर अडा पड़ा है

खामोश जुबान से अब
प्रवाह शब्दों का हो रहा है
अंधेरे की कारा के बाद
सूरज फिर से दमक रहा है

नजर बदल गई है
नजरिया बदल गया है
जो आँखें झुकीं थी अब तक
उनमें आसमान का ख्वाब आ गया है !

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Thursday, November 20, 2008

कविता: प्रकृति

प्रकृति की सुन्दरता देखो
बिखरी चारों ओर है
कहीं पर पीपल कहीं अशोक
कहीं पर बरगद घोर है

लाल गुलाब से सुर्ख है
देखो धरती के दोनों गाल
लिली मोगरा और चमेली
मचा रहे है धमाल

देखो हिम से भरा हिमालय
नंदा की ऊँची पर्वत चोटी
कल कल करती बहती देखो
गंगा यमुना की निर्मल सोती

प्रकृति ने हम सबको दिया
जीवन का अनुपम संदेश
आओ मिटाए मन की दूरी
दूर हटाये कष्ट कलेश !

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

कविता: ज़िन्दगी

बंद दरवाजे हों
या खुली खिड़किया
हर समय बढ़ती है
जिंदगी से नजदीकिया

हो के बेवफा
वफ़ा का दम भरती है
गुमनाम गलियों में रहकर
हमेशा मशहूर रहती है

सब जानते है साथ
छोड़ देगी एक दिन
फ़िर भी वादा करती है
हर पल हर दिन

कभी आम है
कभी खास है जिंदगी
कड़वे अनुभवों की
मिठास है जिंदगी

आज है कल
नही रहेगी जिंदगी
फिर भी बातों में
जिन्दा रहेगी जिंदगी

एक हमसफ़र है
राहे गुजर है जिंदगी
खुदा से खुबसूरत
अहसास है जिंदगी !
रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Wednesday, November 12, 2008

कविता : अद्भुत है संसार

अद्भुत है संसार
अद्भुत इसकी माया
जिसने जितना खोया
उसने उतना पाया
डूबोगे तुम जितना
उतना ही पाओगे
गर रहे किनारे खड़े
तो हाथ मलते रह जाओगे
असत्य से जीत
पास आती जायेगी
मगर रहे ध्यान यह
सत्य सा अमर ना हो पायेगी
जुदाई से बढती मोहब्बत
मोहब्बत बड़ी बेईमान
मोहब्बत बड़ा खुदा से
पर होता इससे कमजोर इंसान

-रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी

Saturday, November 1, 2008

कविता: अब क्या लिखू

अब क्या लिखू
दरकती दीवारों से
झांकती बचपन की यादें
सूखे नीम के पेड़ पर
लटका झूला
जिस पर शायद ही
कोई झूले और
आसमान को छूले
नुक्कड़ पर खड़े पोस्ट
बाक्स पर लटका ताला
शायद उमीदों पर भी
अब ऐसे ही तालों में बंद है
चूल्हे से निकलता धुंआ
अब इशारा करता है
की पेट की आग पर
पानी पड़ चुका है
सपने में सूख चुका है
उमीदों का समुन्दर
खुशियाँ गली में फिरती
और गम दिलों के अन्दर
अब क्या लिखू
अब क्या लिखू

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Tuesday, October 21, 2008

कविता : कंदीलों से सजी गलियां

कंदीलों से सजी गलियां
चमके हर आँगन घर द्वार
मन की खुशियाँ नभ से ऊँची
आया दीपों का त्यौहार

झिलमिल करती फुलझरियां
लम्बी लड़ी चटाई की
तरह तरह के बने पकवान
थाली भरी मिठाई की

पूजन करके भगवन का
आओ मिलके खुशी मनाये
जीवन की कारा मिट जाए
मन में ऐसा दीप जलाये

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Sunday, October 19, 2008

रवि प्रकाश केशरी की कविता - शब्द

शब्द होते है
पढने के लिए
शब्द होते है
गढ़ने के लिए
शब्द सीमा में
बांधे नही जाते
शब्द होठो से कहे नही जाते
शब्द अभूझपहेली है
शब्द तेरी मेरी
सहेली है

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Saturday, October 18, 2008

रवि प्रकाश केशरी की कविता: "दूरियां "

दूरिया छोटी
फासले बड़े हो गए
वास्तव में हम
बड़े हो गए,

घट गई देह से
देह की दूरी
दिलो के रिश्ते
दूर हो गए,

आसमान की
खवाहिश में हम
अरमानो के लाशो
पर खड़े हो गए,

जिंदगी की
चाहत में हम
मौत के करीब
होते हो गए,

आधुनिकता के दौर में
सभ्यता हार गई
और हम
फिर नग्न हो गए,

वास्तव में हम बड़े हो गये !


रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Labels