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श्री गणेशाय नमः


Saturday, October 18, 2008

रवि प्रकाश केशरी की कविता: "दूरियां "

दूरिया छोटी
फासले बड़े हो गए
वास्तव में हम
बड़े हो गए,

घट गई देह से
देह की दूरी
दिलो के रिश्ते
दूर हो गए,

आसमान की
खवाहिश में हम
अरमानो के लाशो
पर खड़े हो गए,

जिंदगी की
चाहत में हम
मौत के करीब
होते हो गए,

आधुनिकता के दौर में
सभ्यता हार गई
और हम
फिर नग्न हो गए,

वास्तव में हम बड़े हो गये !


रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

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