आज सूरज अपने
रुबाब पर था
आसमान को
आग सा दहका रहा था !
दिहारी के लिए तैयार
हो रही बजंता
ने एक और फेंट
अपने सिर पर बांधी
ताकि सिर को
और सिर पर पड़े
बोझ को अच्छी तरह
से निभा सके !
सामने पड़े दुधमुहे
बच्चे की आवाज को
दरकिनार कर
निकल पड़ी मजदूरी पर
बिना तपिश की परवाह किए
क्योंकि पेट की तपिश
सूरज की तपिश से ज्यादा
होती है !
रुबाब पर था
आसमान को
आग सा दहका रहा था !
दिहारी के लिए तैयार
हो रही बजंता
ने एक और फेंट
अपने सिर पर बांधी
ताकि सिर को
और सिर पर पड़े
बोझ को अच्छी तरह
से निभा सके !
सामने पड़े दुधमुहे
बच्चे की आवाज को
दरकिनार कर
निकल पड़ी मजदूरी पर
बिना तपिश की परवाह किए
क्योंकि पेट की तपिश
सूरज की तपिश से ज्यादा
होती है !
रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी
वाराणसी
2 comments:
Dear Ravi Prakash Ji,
Very true, nicely described...
Keep it up...we would like to see many more such compositions from you.
Also, thanks to Kesarwani eMagazine for providing a plateform to share all these.
With Best Regards,
Manoj Kesarwani
mkk123@gmail.com
Admin: Kesarwani.net / Kesarwani eGroup
I have started reading poems now after a long time.
Thanks to Mr Ravi.
Sanjeev Kesari JGM TCIL New Delhi
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