हर इंसान अपने भविष्य की अनदेखी आर्थिक मुसीबत के लिए अपनी कमी का एक हिस्सा बचाता है और उसे निवेश करता है ताकि उसकी बचाई हुई रकम मे वृद्धि हो। इसके लिए बहुत से विकल्प होतें हैं जैसे बैंक फिक्सड डिपॉजिट, बैंक बचत खाता, म्यूचुअल फंड, शेयर मार्केट मे निवेश, पी पी ऍफ़ इत्यादी।
घर का कमाने वाला मुखिया जिसकी आय पर सारा परिवार आश्रित रहता है उसके लिए अपने जीवन का बीमा करना बहुत महत्पूर्ण और आवश्यक होता है । जीवन बीमा भविष्य मे बीमित व्यक्ति के ना होने पर परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है । इसके लिए विभिन्न बीमा कंपनियाँ तरह तरह के उत्पाद बनाती है जिसमे अलग अलग तरह के लोगों के लिए अलग विशेषताएं होती है। जैसे बच्चों के उज्जवल भविष्य की बीमा योजना, पेंशन योजना, आजीवन बीमा इत्यादी। निजी जीवन बीमा कम्पनियों के भारत मे प्रवेश के बाद से रोजाना नए नए बीमा उत्पाद बाज़ार मे आ रहे है। पर अधिकतर जीवन बीमा कम्पनियों ने अपनी सकल प्रीमियम आय को बढ़ाने के लिए बीमा और निवेश दोनों को मिला कर एक नया उत्पाद ' यूलिप' निकाल दिया है जिसमे बीमा की सुरक्षा के साथ प्रीमियम का हिस्सा चुने हुए फंड मे निवेश कर दिया जाता है।
यहाँ हम बात कर रहे है बीमे को निवेश से अलग रखने की। पर क्यों? इसके कई कारण है। सबसे पहली बात की बीमा का उद्द्येश्य बीमित व्यक्ति को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना होता है न की बचत और निवेश को प्रोत्साहन करना। आजकल देखा गया है की यूलिप प्लान्स मे बीमा कम्पनियों को कुल प्रीमियम आय मे से सबसे ज़्यादा प्रीमियम प्राप्त हो रही है। जबकि युलिप प्लान मे निवेश का जोखिम स्वयं निवेशक का होता है । अधिकतर बीमा कंपनियाँ और उनके एजेंट यूलिप प्लान्स के तहत अत्यधिक उच्च रिटर्न दिखा रही थी और है। उदाहरण के लिए जीवन बीमा की मार्केट प्लस योजना, जिसमे एजेंटो ने बहुत बढ़ चढ़ कर अनाधिकृत रूप से रिटर्न का आश्वासन दिया था क्यूंकि उस समय भारतीय शेयर बाज़ार मे अच्छी बढ़त हो रही थी। पर आज स्तिथि बिल्कुल भिन्न है, शेयर मार्केट धराशायी हो गया है और ऐसे मे जिन लोगों ने यूलिप मे पैसा लगाया था उन्हें अच्छा खासा नुक्सान उठाना पड़ रहा है।
दूसरे यूलिप प्लान्स मे बीमित व्यक्ति को प्रीमियम का न्यूनतम पाँच गुना और अधिकतम राशि प्लान और बीमे की रकम के हिसाब से होता है। यानी एक व्यक्ति अगर 10,000/- रूपये का वार्षिक प्रीमियम देता ही तो उसे न्यूनतम 50,000/- का बीमा मिलेगा। जबकि की सुरक्षा के लिए मियादी बीमा (जिसमे केवल सुरक्षा दी जाती है कोई लाभ नही) मे उसे इतने ही प्रीमियम मे कहीं ज़्यादा रूपये का बीमा मिल सकता है। जों बीमा की दृष्टि से ज़्यादा उचित है। क्योंकि लाख दो लाख रुपये का बीमा एक सामान्य कमाने वाले व्यक्ति के लिए काफ़ी कम है।
एक बात यूलिप मे मैंने और देखी है वह यह कि मुख्यतः mortality चार्जेस के अलावा उसमे कई तरह के खर्चे बिमा कम्पनी काट लेती है जो कि हर महीने काटा जाता है। कुल सालाना खर्च लगभग १५०० से २२०० रुपये तक (सालाना प्रीमियम यदि १०,०००/- हो ) होता है जो कि शुरू के तीन साल मे कटता ही है । इस तरह से देखे तो शुरू के तीन साल मे जो आप प्रीमियम देतें है उसमे से अधिकतर तो बीमा कंपनी काट लेती है जिसकी भरपाई ही कम से कम ५-६ साल मे होती है तो इस स्तिथि मे जहाँ आपको चौथे साल अगर पॉलिसी से पैसे निकालना चाहें तो आप अच्छे खासे नुक्सान मे रहेंगे। यूनिट लिंक पॉलिसी आप अगर ले तो कम से कम उसे १० से १५ साल अवश्य चलायें तभी आपको फंड से कुछ फायदा होने की उम्मीद होगी।
तो देखा आपने कि यूलिप लेना बीमा के उद्देश्य से कितना महंगा सौदा है? मेरी राय मे बीमा निवेश को अलग रखना ही समझदारी है। आप यदि ३५ वर्ष के है तो ५ लाख रुपये के मियादी बीमे के लिए आपको करीब ३५०० के आस पास देने होंगे जबकि यूलिप मे १ लाख के बीमे पर करीब १५०० कट जाते है तो अच्छा है कि आप मियादी बीमा ले और शेष (१०,०००-३५००=६५०० ) राशि को किसी दूसरे निवेश के विकल्प मे लगायें।
श्री गणेशाय नमः
Monday, October 20, 2008
निवेश और बीमे को अलग रखने मे ही समझदारी है
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