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श्री गणेशाय नमः


Friday, November 7, 2008

छत्तीसगढ़ के जन नेता निरंजन केसरवानी

08 फरवरी 1994 को फोन पर सूचना मिली कि श्री निरंजन केशरवानी का आयुर्वेद विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में निधन हो गया। दूसरे दिन सभी अखबारों की सुर्खियों में इसे प्रकाशित किया गया। किसी ने लिखा-'छत्तीसगढ़ के शेर अब नहीं रहे...', किसी ने लिखा-'छत्तीसगढ़ ने अपना एक जुझारू नेता खो दिया।' यह समाचार मुझे ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के हजारों-लाखों लोगों को रूला दिया। यों किसी एक व्यक्ति के निधन से कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर श्री निरंजन केशरवानी किसी भी मायने में एक व्यक्ति नहीं थे बल्कि वे एक ऐसे वट वृक्ष थे जिनके साये में अनेक व्यक्ति उभरे, फूले फले और राजनीति के शिखर पर पहुंचकर जगमगा रहे हैं। ऐसे अनेक व्यक्ति को मैं अच्छी तरह से जानता हूं जिनके वे प्रेरणास्रोत थे। वे एक अच्छे वक्ता, कुशल अधिवक्ता और राजनेता ही नहीं बल्कि अच्छे पथ प्रदर्शक भी थे। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि वे मेरे जैसे अनेक लोगों से वाद-विवाद करते थे और अपनी बातों को कुछ इस तरह से रखते थे कि हमें उनकी बातों से सहमत होना ही पड़ता था। वे ऐसे ऐसे तथ्य प्रस्तुत करते थे कि हमें जवाब देना मुश्किल हो जाता था। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक और मेडिकल साइंस, सभी क्षेत्रों में उनकी समान पकड़ थी। उनके कई संवाद मुझे आज भी स्मरण हैं।

वे राजनीति के क्षेत्र में 'छत्तीसगढ़ के शेर' कहलाते थे। उनकी दहाड़ से जहां अच्छे अच्छे राजनेता और अधिकारियों की हालत पतली हो जाती थी, वहीं उनके अकाट्य तर्कों के सामने सबको उनकी बात माननी पड़ती थी। मुझे एक वाकया याद आ रहा है, जब चौधरी चरणसिंह काम चलाऊ सरकार के प्रधान मंत्री बने और बिलासपुर के दौरे पर आये थे। सर्किट हाउस में उनसे मिलने वालों का तांता लगा था, तब बिलासपुर लोकसभा के सांसद श्री निरंजन केशरवानी भी उनसे मिलने गए। उस समय बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र को अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट बनाने की सिफारिश की जा चुकी थी। केसरवानी जी ने उनसे पूछा कि 'आपने वर्तमान सांसद से बिना सलाह मशविरा किये इसे सुरक्षित सीट कैसे घोषित कर दिया ?' सवाल जवाब के बीच ऐसी स्थिति आ गयी कि उन्हें पुनर्विचार का आश्वासन देना पड़ा। उनकी इस निर्भीकता से जनता बहुत प्रभावित हुई और उन्हें अपने सर-आंखों में बिठा लिया। वे एक सफल अधिवक्ता भी थे। वे तथ्यों को जिस तरह से जिरह करके प्रस्तुत करते थे कि विद्वान न्यायाधीश भी चकित रह जाते थे। बिलासपुर और मुंगेली में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में उनकी गिनती एक सफल अधिवक्ताओं में होती थी।

अनूठे व्यक्तित्व के धनी श्री निरंजन केशरवानी का जन्म उनके ननिहाल झलमला, जिला दुर्ग में 29 जून सन् 1930 में हुआ। उनकी प्राथमिक और हायर सेकेंडरी शिक्षा मुंगेली में हुई। उच्च शिक्षा बनारस और बिलासपुर में हई। कानून की शिक्षा उन्होंने नागपुर के मारिस कॉलेज से ग्रहण की। सरल स्वभाव और नेतृत्व क्षमता के कारण वे अपने छात्र जीवन में स्कूल और कालेज में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। उनके सहपाठी श्री श्रीपति बाजपेयी ने चर्चा के दौरान मुझे बताया कि मैं, श्री निरंजन केशरवानी और श्री राजेन्द्रप्रसाद शुक्ला सहपाठी थे। दोनों शुरू से ही राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी और बहुत अच्छे मित्र थे। उनमें किसी न किसी बात को लेकर अक्सर तकरार हो जाती थी, तब मुझे ही बीच-बचाव करनी पड़ती थी। आगे चलकर दोनों राजनीति में आए और राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी बने। उनके छात्र जीवन के ऐसे अनेक संस्मरण डॉ. गजानन शर्मा भी बताते नहीं अघाते थे। उन्होंने बताया कि उनकी विशेष रूचि समाज, साहित्य और राजनीति में थी।

कानून की शिक्षा उन्होंने नागपुर से उन दिनों प्राप्त की जब सी. पी. एंड बरार प्रदेश की राजधानी नागपुर में थी और उनके पिता श्री अम्बिकाप्रसाद साव रामराज्य परिषद से विधायक थे। राजधानी होने से वे वहां हमेशा जाया करते थे और वहां उनकी बेटी और दामाद भी रहते थे। एक बार वे अपने पिता जी को रेल्वे स्टेशन पहुंचाकर लौट रहे थे तभी रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया। इस हादसे में डॉक्टरों की थोड़ी लापरवाही के कारण उनका एक पैर काटना पड़ा था। मगर उनके पिता और माता जी का असीम स्नेह और सहधर्मिणी श्रीमती सरोजनी देवी के सहयोग से उन्होंने अपने जीवन की नैया पार कर ली। उन्होंने अपने जिन्दगी को खूब जिया और अपनी विकलांगता को कभी आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने नागपुर में छत्तीसगढ़ के विद्यार्थियों का एक 'छत्तीसगढ़ क्लब' भी बनाया था। वे अपने मित्रों और सहपाठियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे। एक वाकये का जिक्र करते हुए उन्होंने मुझे बताया कि एक बार बालपुर के पंडित लोचन प्रसाद पांडेय के पुत्र की तबीयत बिगड़ गयी और उनकी हरकतों से सभी परेशान होने लगे तो उन्हें रायगढ़ तक छोड़ने के लिए किसी को भेजने का निश्चय हुआ। तब उनकी जिद पर उन्हें रायगढ़ तक पहुंचाने आना पड़ा था।

स्मृतियां चलचित्र की भांति मेरे जेहन में घूमने लगती है। मेरी उनसे पहली मुलाकात सारंगढ़ में केशरवानी भवन के उद्धाटन के अवसर पर हुई। वे इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। मैं एम. एस-सी. की पढ़ाई पूरी करके लौटा था। सामाजिक गतिविधियों में मेरी पहले से ही गहरी रूचि थी। मैंने शिवरीनारायण में 'केशरवानी यूथ सोसायटी' भी बनायी थी जिसका मैं अध्यक्ष था। इस सामाजिक कार्यक्रम में उन्होंने मुझे ही नहीं बल्कि हमारी नवयुवकों की जमात को अपना स्नेह और संबल प्रदान किया। मुझे वे अपने बगल में बिठाये और मेरी बातों को ध्यान पूर्वक सुनते रहे यही नहीं बल्कि मेरी बातों का पूरा समर्थन किया। अपने उद्बोधन में उन्होंने मेरी बातों का जिक्र करके मुझे प्रोत्साहित किया। इस घटना ने उनके प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा भर दी। संयोग कहें या फिर ईश्वर की लीला, मेरी शादी उनकी भतीजी कल्याणी से हो गयी। फिर तो कई बार मुझे उनका सान्निघ्य मिला। वे हमसे केवल चर्चा ही नहीं करते बल्कि वे हमारा मार्गदर्शन भी किया करते थे। नवयुवकों की जमात में मेरे अलावा डॉ विनय गुप्ता, प्रदीप केशरवानी, डॉ. विजय गुप्ता, कल्पना, इंद्राणी, कल्याणी, आशीष, अखिल और अंजु केशरवानी, कमलेश्वर, विमल और कुमार आदि थे जिनसे वे हमेशा चर्चा किया करते और हमारा मार्गदर्शन किया करते थे। डॉ. विनय गुप्ता और प्रदीप केसरवानी तो उन्हें अपना आदर्श और प्रेरणास्रोत मानते हैं। चर्चा के दौरान दोनों ने मुझे बताया कि कई बार हमें उनसे प्रेरणा मिली है। उनका स्नेह-संवाद हमारा संबल रहा है। उन्हीं की प्रेरणा से हमने समाज सेवा का बीड़ा उठाया है। डॉ. विनय ने मुझे बताया कि कई बार उनसे मुझे संवाद करने का मौका मिला। डॉक्टर होने के नाते ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती थी कि मुझे जवाब देना मुश्किल हो जाता था, तब वे स्वयं इसका निदान किया करते थे। मैं उनकी मेडिकल साइंस और विज्ञान में पकड़ देखकर आश्चर्यचकित हो जाया करता था। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनकी स्मृतियां हमें आज भी उनका स्मरण कराती है। वे हमें बहुत याद आते हैं और हमारी आंखें नम हो जाती है।

उनके कई मित्रों, सहयोगियों, सहपाठियों और राजनेताओं से मुझे मिलने और चर्चा करने का मौका मिला। वे हमेशा उनकी निर्भीकता, दबंगता, साहस और सबको साथ लेकर चलने की कला का जिक्र करते अघाते नहीं हैं। चाहे सामाजिक क्षेत्र हो अथवा राजनीति, कोर्ट का कटघरा हो अथवा होली के अवसर पर महामूर्ख सम्मेलन, सभी में अवश्य शिरकत करते थे। राजनीति तो उन्हें अपने पिता श्री अम्बिका साव से विरासत में मिली थी। कानून की परीक्षा पास करके उन्होंने वकालत शुरू की, तब उनके पिता दूसरी बार चुनाव लड़े जिसमें उन्होंने पूरी सक्रियता से भाग लिया। अंचल के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता और पूर्व सांसद श्री रामगोपाल तिवारी के सानिघ्य में उन्होंने वकालत शुरू की थी। उसके बाद वकालत के क्षेत्र में वे आगे बढ़ते ही गए। समय गुजरता गया और वे वकालत में उलझते गए। इस बीच छत्तीसगढ़ में कई हादसे हुए जिनकी गुत्थियों को सुलझााने के लिए आगे आए, चाहे गुरवाइन-डबरी का गोलीकांड हो, चांपा और पांडातराई का गोलीकांड हो, शक्रजीत नायक का दल बदल प्रकरण हो या जंगबली-बजरंगबली प्रकरण, सभी में उन्होंने नि:स्वार्थ भावना से पैरवी कर अपनी सक्रियता और जननेता होने का परिचय दिया। उनके इन कार्यो से उन्हें प्रसिद्धि ही नहीं मिली बल्कि उन्हें लोगों का असीम प्यार और विश्वास मिला। इससे सत्ताधीशों की नींद हराम हो गयी। उन्हें हमेशा विपक्ष की राजनीति रास आयी और वे भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे। सन् 1975 के अपातकाल में 19 माह वे जेल में रहे और जेल की बुराईयों को दूर करने के लिए संघर्ष किये। इस कारण 19 माह की अवधि में कई जेलों में स्थानान्तरित किया गया। 1977 में उन्हें जेल से मुक्ति मिली और जनता पार्टी की टिकट पर वे बिलासपुर लोकसभा सीट से सांसद बने। लोगों ने उन्हें अपने सर-आंखों पर बिठाया। उन्होंने अपने पिता श्री अम्बिका साव की स्मृति में बिलासपुर में 'अम्बिकासाव स्मृति स्वर्ण कप हाकी टूर्नामेंट' शुरू कराया था। लेकिन उसके बाद उनकी स्मृति में दोबारा हाकी टूर्नामेंट नहीं हुआ। इसके पूर्व वे सन् 1967 में लोरमी-पंडरिया से विधानसभा चुनाव लड़े और हार गए लेकिन इससे उन्हें संघर्ष करने की प्रेरणा मिली और सन् 1974 में जरहागांव-पथरीया विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव जीतकर सक्रिय राजनीति में आये। पार्टी के निर्देश पर उन्होंने अकलतरा विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा मगर हार गए लेकिन सन् 1990 में लोरमी-पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते। वे मुंगेली नगरपालिका के लोकप्रिय अध्यक्ष भी रहे। बिलासपुर को-आपरेटिव्ह बैंक के संचालक और भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे। उनके राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आये लेकिन वे कभी विचलित नहीं हुए, न ही उनकी दबंगता और निर्भीकता में अंतर आया। राजनीति में पार्टी के नेता तो क्या सत्ता पक्ष के नेता भी उनका लोहा मानते थे और उनका आदर करते थे। संभवत: यही कारण है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में उनका महत्वपूर्ण स्थान था। पार्टी के नेता उन्हें अपना सर्वमान्य नेता मानते थे। डॉ. गजानन शर्मा उन्हें अपना एक जिज्ञासु और साहित्य के विद्यार्थी के रूप में देखते थे तो स्वजातीय उन्हें अपना सर्वमान्य प्रमुख। विविध विधाओं में पारंगत और हंसमुख मिजाज के धनी श्री निरंजन केसरवानी जिंदगी के अंतिम पड़ाव में सबके होकर भी उनके नहीं थे। उनकी अस्वस्थता को राजनीतिक निष्क्रियता समझा गया। नागपुर और दिल्ली के अस्पताल में वे जिंदगी और मौत से जूझते रहे। वे बहुत कुछ चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे, तब उन्हें पहली बार राजनीति में आने का दु:ख हुआ। हालांकि सांसद श्री दिलीपसिंह जूदेव अंतिम समय तक उनके साथ रहे मगर अंतत: वे जिंदगी से हार गए। इस अंतिम यात्रा में वे अपने मित्रों, स्वजनों, परिजनों को याद करते रहे। वे मुंगेली की उर्वरा भूमि में एक कृषि महाविद्यालय खुलवाना चाहते थे मगर उनका सपना अधूरा रह गया। वे अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। कदाचित् इसी कारण उनके अनुज श्री निर्मलप्रसाद केसरवानी ने उन्हें ''अलख निरंजन'' कहा करते हैं, वही निरंजन जो जीवन भर अलख जगाते रहे। आज उनकी केवल स्मृतियां शेष हैं। हम उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।


परिचय :

नाम : निरंजन केसरवानी

पिता : अम्बिका प्रसाद साव

माता : श्रीमती नान्ही बाई

पत्नी : श्रीमती सरोजनी देवी

जन्म तिथि : 29 जून 1930, ननिहाल झलमला जिला- दुर्ग

शिक्षा : बी. ए., एल. एल-बी.

अभिरूचि : साहित्य, समाज और राजनीति

राजनीतिक यात्रा : 1967 में लोरमी-पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किये। हांलांकि इस चुनाव में उन्हें विजय नहीं मिला लेकिन क्षेत्र की जनता में वे काफी लोकप्रिय हो गये।

1974 में जरहागांव-पथरिया विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित।

1977 में बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित।

1985 में अकलतरा विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़े मगर हार गये।

1990 में लोरमी-पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित।

नगरपालिका परिषद मुंगेली के दो बार अध्यक्ष रहे।

भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे।

जिला सहकारी बैंक बिलासपुर के संचालक रहे।

भूमि विकास बैंक के अध्यक्ष रहे।

विधानसभा के कई समितियों के सदस्य रहे।

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रचना, लेखन एवं प्रस्तुति,

प्रो. अश्विनी केशरवानी

राघव, डागा कालोनी,

चांपा-495671 (छ.ग.)

Saturday, November 1, 2008

बिपाशा अग्रवाल : वाराणसी से न्यूयार्क का सफर

विपाशा अग्रवाल भारत की पहली मॉडल हैं जिन्हें नामी इंटरनेशनल मॉडलिंग एजेंसी आईएमजी ने अंतरराष्ट्रीय कांट्रेक्ट के लिए चुना है। इसके साथ ही वो गिजेल बुदचैन, केट मॉस, हैदी क्लुम और गेमा वॉर्ड की कतार में आ गई हैं। विपाशा इसे तीन साल पहले शुरू हुई रोलर कोस्टर राइड का हिस्सा मान रही हैं।
वाराणसी गर्ल विपाशा चार साल पहले एमबीए करने के लिए दिल्ली पहुंचीं, लेकिन एक फिनिशिंग स्कूल में दाखिला लेने से उनकी जिंदगी की राह बदल गई। मॉडलिंग के अच्छे ऑफर आए और आज विपाशा कैरियर के शानदार मुकाम पर हैं।
वैसे विपाशा खुद को रैंप मॉडल नहीं मानतीं और स्विम वीयर पहनने से परहेज करती हैं। ताकि उनके माता-पिता को करीबियों के सामने परेशानी न हो। इंटरनेशनल मॉडलिंग एरीना में विपाशा की एंट्री लैक्मे फैशन वीक के होर्डिग्स से हुई, वह ऑफिशियल लेक्मे गर्ल हैं। हालिया एसाइनमेंट्स के बाद मोनिकांगना दत्ता को पेरिस और विपाशा को न्यूयॉर्क में रैंप पर चलना है, यहीं से ये इंटरनेशनल एड एसाइनमेंट्स करेंगी।
आपको बता दें कि विपाशा के पैरेंट्स वाराणसी में कपड़ों की दुकान संचालित करते हैं। वे मानते हैं कि मॉडलिंग विपाशा के लिए वक्ती काम है। एक समय वह भी था जब काम के एवज में विपाशा को मिलने वाले चैक वो चैरिटी में दे देते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। ये लोग अब अपनी बेटी की उपलब्धि पर गौरवांन्वित हैं। लेक्मे फैशन वीक के दौरान पूरे वाराणसी में विपाशा के होर्डिग्स देखकर वे काफी खुश हुए। शुरुआत में विपाशा के कैरियर की मुखालफत करने वाले लोग अब गर्व से फूले नहीं समा रहे हैं।

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

कविता: अब क्या लिखू

अब क्या लिखू
दरकती दीवारों से
झांकती बचपन की यादें
सूखे नीम के पेड़ पर
लटका झूला
जिस पर शायद ही
कोई झूले और
आसमान को छूले
नुक्कड़ पर खड़े पोस्ट
बाक्स पर लटका ताला
शायद उमीदों पर भी
अब ऐसे ही तालों में बंद है
चूल्हे से निकलता धुंआ
अब इशारा करता है
की पेट की आग पर
पानी पड़ चुका है
सपने में सूख चुका है
उमीदों का समुन्दर
खुशियाँ गली में फिरती
और गम दिलों के अन्दर
अब क्या लिखू
अब क्या लिखू

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Saturday, October 25, 2008

दो करोड़ साठ लाख भारतीय विदेशों मे

जी हाँ करीब दो करोड़ साठ लाख भारतीय यूरोप, एशिया, और अफ्रीका के विभिन्न देशों मे रह रहे है, और अपने बुद्धि और कुशलता से वहा कि अर्थव्यवस्था मे अपना योगदान दे रहें है। भारत के कुशल और बुद्धिमान व्यक्तियों ने विदेशो मे भारत का खूब नाम रोशन किया है। इक्कीसवीं सदी मे पूरे विश्व कि निगाह भारत पर है । आईये देखे भारतीयों कि जनसँख्या विदेशों मे :-

39,50,000 भारतीय एशिया मे है
47,00,000 भारतीय यूरोप मे व्
6,00,000 भारतीय अफ्रीका मे है ।

विभिन्न देशों मे भारतीयों कि संख्या इस प्रकार है :
अमेरिका : 19 लाख
आस्ट्रेलिया : 2 लाख 30 हज़ार
ब्रिटेन : 1 लाख 60 हज़ार
जर्मनी : 80 हज़ार
फ्रांस : 75 हज़ार
इटली : 71 हज़ार
रूस : 16 हज़ार

#अमेरिका मे कुल आबादी मे से सिर्फ़ ३ % आबादी भारतियों कि है लेकिन अमेरिका कि अर्थव्यवस्था और विकास मे करीब ५०% योगदान भारतियों का है ।
#अमेरिका मे 38% डाक्टर भारतीय मूल के है।
#36% भारतीय वैज्ञानिक नासा मे है।
#आई टी के क्षेत्र मे 12% वैज्ञानिक भारतीय है।
#अमेरिका कि कुल समूह जातियों मे भारतीयों मे सर्वोच्च शैक्षणिक योग्यता है। कुल भारतीयों मे 67% भारतीयों के पास स्नातक या उससे उच्च डिग्री है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रतिशत सिर्फ़ 28% है।
#अमेरिका के कुल होटलों मे से ३५% भारतीयों मालिक के है और सस्ते लौज मे ५०% भारतीयों के है । जिसकी कुल बाजार लागत करीब ४० अरब डालर है।
#अमेरिका के हर दस मे से एक भारतीय करोड़पति है । कुल अमीरों मे १० % अमीर भारतीय है ।
#अमेरिका मे रहने वाले कुल भारतीयों मे से 40% भारतीय के पास परास्नातक, डाक्टरेट या अन्य पेशेवर डिग्री है, जो कि अमेरिका के राष्ट्रीय स्तर से पाँच गुना अधिक है।

अमेरिका ही नही विश्व के कई देशों मे भी भारतीयों ने अपना परचम लहराया है।
है ना गर्व कि बात? केसरवानी समाज के भी सैकडों लोग विदेशों मे विभिन्न पेशे और पदों पर आसीन है । आशा है कि जल्द ही भारत एक महाशक्ति के रूप मे उभर कर आएगा।

Wednesday, October 22, 2008

कविता : तपिश ( Poem by Ravi Prakash Keshri)

आज सूरज अपने
रुबाब पर था
आसमान को
आग सा दहका रहा था !

दिहारी के लिए तैयार
हो रही बजंता
ने एक और फेंट
अपने सिर पर बांधी
ताकि सिर को
और सिर पर पड़े
बोझ को अच्छी तरह
से निभा सके !

सामने पड़े दुधमुहे
बच्चे की आवाज को
दरकिनार कर
निकल पड़ी मजदूरी पर
बिना तपिश की परवाह किए
क्योंकि पेट की तपिश
सूरज की तपिश से ज्यादा
होती है !
रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Tuesday, October 21, 2008

छत्तीसगढ़ की पाँच दिवसीय दीपावली

छत्तीसगढ़ मै पाँच दिन तक चलने वाले इस त्यौहार का आरम्भ धनतेरस यानि धन्वन्तरी त्रयोदस से होता है । मान्यता है की इस दिन भगवान् धन्वन्तरी अपने हाँथ में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। समुद्र मंथन में जो चौदह रत्न निकले थे, भगवान् धन्वन्तरी उनमे से एक है। वे आरोग्य और समृद्धि के देव है । स्वास्थ्य और सफाई से इनका गहरा सम्बन्ध होता है। इसलिए इस दिन सभी अपने घरों की सफाई करते है और लक्ष्मी जी के आगमन की तयारी करतें है। इस दिन लोग यथाशक्ति सोना- चांदी और बर्तन इत्यादि खरीदते है।

दूसरे दिन कृष्ण चतुर्दशी होता है। इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण नरकासुर का वध करके, उनकी क़ैद से हजारों राजकुमारियों को मुक्ति दिलाकर उनके जीवन में उजाला किए थे। राजकुमारियों ने इस दिन दीपों की श्रृंख्ला जलाकर, अपने जीवन में खुशियों को समाहित किया था।

तीसरे दिन आता है दीपावली। दीपों का त्यौहार..... लक्ष्मी पूजन का त्यौहार। असत्य पर सत्य की, अन्धकार पर प्रकाश की, और अधर्म पर धर्म की विजय का त्यौहार है दीपावली। इस त्यौहार को मनाने के पीछे अनेक लोक मान्यताएं जुड़ी हुई है। भगवान् श्रीरामचंद्र जी के चौदह वर्ष बनवास काल की समाप्ति और अयोध्या आगमन पर उनके स्वागत में दीप जलाना, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस का इस दिन जन्म हुआ था और इसी दिन उन्होंने जल समाधि ली थी। अहिंसा की प्रतिमूर्ति और जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इसी दिन निर्वाण किया था। सिख धर्म के प्रवर्तक श्री गुरुनानक देव जी का जन्म इसी दिन हुआ था। इस सत्पुरुषों के उच्च आदर्शों और अमृतवाणी से हमे सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। इसी अमावास को भगवान् विष्णु जी ने धन की देवी लक्षी जी का वरण किया था। इसीलिए इस दिन सारा घर दीपों के प्रकाश से जगमगा उठता है। पटाखे और आतिशबाजी की गूँज उनके स्वागत में होती है। इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना करके प्रसन्न किया जाता है, और घर को श्री संपन्न करने की उनसे प्रार्थना की जाती है। :-

जय जय लक्षी ! हे रमे ! रम्य !
हे देवी ! सदय हो, शुभ वर दो !
प्रमुदित हो, सदा निवास करो
सुख संपत्ति से पूरित कर दो,
हे जननी ! पधारो भारत में
कटु कष्ट हरो, कल्याण करो
भर जावे कोषागार शीघ्र
दुर्भाग्य विवश जो है खाली
घर घर में जगमग दीप जले
आई है देखो दीपावली.... !

चौथे दिन आती है गोवर्धन पूजायह दिन छत्तीसगढ़ में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। मुंगेली क्षेत्र में इस दिन को पान बीडा कहतें है और अपने घरों में मिलने आए लोगों का स्वागत पान बीडा देकर करतें है। इस दिन गोबर्धन पहाड़ बनाकर उसमे श्रीकृष्ण और गोप गोपियाँ बनाकर उनकी पूजा की जाती है।

पाँचवे दिन आता है भाई दूज का पवित्र त्यौहार। यमराज के वरदान से बहन इस दिन अपने भाई का स्वागत करके मोक्ष की अधिकारी बनती है। पाँच दिन तक चलने वाले इस त्यौहार को लोग बड़े धूमधाम और आत्मीय ढंग से मनाते है।

यह सच है की दीपावली के आगमन से खर्च में बढोत्तरी हो जाती है और पाँच दिन तक मनाये जाने वाले इस त्यौहार के कारण आपका पाँच माह का बजट फेल हो जाता है। उचित तो यही होगा की आप इसे अपने बजट के अनुसार ही मनाएं । हर वर्ष आने वाला दीपावली अपने चक्र के अनुसार इस वर्ष भी आया है और भविष्य में भी आयेगा पर इससे घबराएँ नहीं और सादगीपूर्ण और सौहार्द के वातावरण में मनाएं । दूरदर्शिता से काम ले, इतनी फिजूलखर्ची ना करें की आपका दिवाला ही निकल जाए और ना ही इतनी कंजूसी करें की दीपावली का आनंद ही न मिल पाए..।

हे दीप मालिके ! फैला दो आलोक
तिमिर सब मिट जाए

प्रो अश्विनी केशरवानी
राघव- डागा कालोनी - चंपा, (छत्तीसगढ़)

कविता : कंदीलों से सजी गलियां

कंदीलों से सजी गलियां
चमके हर आँगन घर द्वार
मन की खुशियाँ नभ से ऊँची
आया दीपों का त्यौहार

झिलमिल करती फुलझरियां
लम्बी लड़ी चटाई की
तरह तरह के बने पकवान
थाली भरी मिठाई की

पूजन करके भगवन का
आओ मिलके खुशी मनाये
जीवन की कारा मिट जाए
मन में ऐसा दीप जलाये

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

Monday, October 20, 2008

भारतीय संस्कृति की कुछ जानकारियाँ

भारतीय संस्कृति की कुछ जानकारियाँ : हमे गर्व है कि हम भारतीय है। भारत की गौरवपूर्ण संस्कृति ने पूरे विश्व में अपना एक अलग स्थान बनाया है। आईये एक नज़र डालते है भारतीय संस्कृति की कुछ रोचक जानकारियों पर ...

चार वेद : ऋग्वेद, सामवेद, अर्थवेद, यजुर्वेद, ।
छः शास्त्र : वेदांग, सांख्य, योग, निरुक्त, व्याकरण, छंद ।
सात नदियाँ : गंगा, जमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु, कावेरी ।
अट्ठारह पुराण : गरुण पुराण, भागवत पुराण, हरिवंश पुराण, भविष्य पुराण, लिंग पुराण, पद्मा पुराण, बावन पुराण, कूर्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, मत्स्य पुराण, स्कन्द पुराण, ब्रह्म पुराण, नारद पुराण, कल्कि पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, विष्णु पुराण, वराह पुराण।
पंचामृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर ।
पाँच तत्व : पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि ।
तीन गुण : सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण ।
तीन दोष : वात, पित्त, कफ ।
तीन लोक : आकाश, पाताल, मृत्युलोक ।
सात सागर : क्षीर सागर, दुधी सागर, घृत सागर, पयान सागर, मधु सागर, मदिरा सागर, लहू सागर ।
सात द्वीप : जम्बू द्वीप, पलक्ष द्वीप, कुश द्वीप, शाल्माली द्वीप, क्रौंच द्वीप, शंकर द्वीप, पुष्कर ।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, महेश ।
तीन जीव : जलचर, नभचर, थलचर ।
तीन वायु : शीतल, मंद, सुगंध ।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ।
चौदह भुवन : तल, अतल, वितल, सुतल, रसातल, पाताल, भुवलोक, भूलोक, स्वर्गलोक, मृत्युलोक, यमलोक, वरुण, सत्यलोक, ब्रह्मलोक ।
चार फल : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ।
चार क्षत्रु : काम, क्रोध, लोभ, मोह ।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास ।
चार धाम : जगन्नाथ, रामेश्वर, द्वारका, बद्रीनाथ ।
पंचगव्य : दूध, दही, घी, गोबर, यज्ञ
अष्ट धातु : सोना, चांदी, ताँबा, लोहा, शीशा, कांसा, रांगा, पीतल ।
पाँच देव : ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, सूर्या।
चौदह रत्न : अमृत, ऐरावत, हाथी, कल्पवृक्ष, कौस्तुभ मणि, उच्चैश्रवा, घोड़ा, शंख, चंद्रमा, धनुष, कामधेनु, धन्वन्तरी वैद्य, रम्भा, अप्सरा, लक्ष्मी, वारुणी, वृष ।
नौ निधि : पक्ष, महापक्ष, शंख, मकर, कश्यप, कुकुंद, मुकुंद, नील, बर्च ।
नवधा भक्ति : श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चना, वंदना, मित्र, दास्य, आत्मनिवेदन ।

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