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श्री गणेशाय नमः


Tuesday, December 22, 2009

लघु कथा: तृप्ति

लघु कथा: तृप्ति
बैंक की सीढियाँ चढ़ते हुए अनुराग काफी उधेड़बुन में था. ज़िन्दगी ने आज उसको एक ऐसे मुकाम पर  लाकर खड़ा कर दिया था जहां से उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. एक ओर बेटी की शादी की चिंता तो दूसरी ओर अपने पिता की ज़िन्दगी का सवाल.

अगले महीने अनुराग की बेटी शिप्रा की शादी है. बेटी की शादी के लिए अनुराग ने उसके पैदा होते ही पाई पाई जोड़ना शुरू कर दिया था ताकि शादी में दिल खोल कर खर्च कर सके और अपनी वो हर हसरत पूरी कर सके जो उसने पाली थी. मगर पिछले दिनों सीढ़ियों से गिरने के कारण अनुराग के पिता के सर में काफी गहरी चोट आई थी और डाक्टरों ने कहा की अगर समय पर ऑपरेशन नहीं हुआ तो इनकी जान भी जा सकती है.

यह सब सोचते हुए अनुराग बैंक में दाखिल हुआ. चेक देकर और टोकन लेकर वह लाइन में खड़ा हों गया. अनुराग आज ज़रूर  अपने पिता के इलाज़ के लिए अपनी सारी जमा पूँजी निकाल रहा था, पर एक बेटी के प्रति कर्त्तव्य निभाना उसे ज्यादा ज़रूरी लग रहा था, जो उसके लिए इज्ज़त की बात हों गयी थी. मगर इस उहापोह में एक पिता से ज्यादा एक बेटा होने का कर्त्तव्य ज्यादा भारी पड़ रहा था.

टोकन का नंबर आते ही अनुराग काउंटर की ओर बढ़ा, तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी. अनुराग ने तुरंत फ़ोन रिसीव किया, उधर से उसकी बीवी सुधा की आवाज़ आई. सुधा की बातें सुनकर अनुराग काउंटर से बिना पैसे लिए अपने कदम मोड़ लिए

अब अनुराग के चेहरे पर चिंता के भाव की जगह सुकून की लकीरें थी.  अब अनुराग शिप्रा की शादी अच्छे तरीके से कर सकेगा क्योंकि अनुराग के सर से एक बोझ उतर गया था, उसके पिता की मौत की खबर फ़ोन पर जो आ चुकी थी.

शायद भगवान ने उसकी सुन ली और एक परमपिता ने एक पिता की लाज रख ली

लेखक: रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी




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