कविता: नन्हे कोपल
नन्हे कोपल पीपल के
अलसाये इठलाये से
उग आये हैं टहनी पे
देखो तो शर्माए से !
सूरज की पीली किरणों का
करें सामना ये डट के
चले बसंती मस्त पवन जब
लहराए ये हौले हौले से !
निस दिन बढ़ते रहते
जैसे हों मद मस्त गज
जड़ से जुड़े रहे हमेशा
ले माथे पे धूलि रज !
एक दिन बन जायेगा देखो
कोपल का इक नव इतिहास
झंझावत से सदा जूझते
नन्हे कोपल को शाबाश !
लेखक: रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी