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श्री गणेशाय नमः


Thursday, November 20, 2008

कविता: प्रकृति

प्रकृति की सुन्दरता देखो
बिखरी चारों ओर है
कहीं पर पीपल कहीं अशोक
कहीं पर बरगद घोर है

लाल गुलाब से सुर्ख है
देखो धरती के दोनों गाल
लिली मोगरा और चमेली
मचा रहे है धमाल

देखो हिम से भरा हिमालय
नंदा की ऊँची पर्वत चोटी
कल कल करती बहती देखो
गंगा यमुना की निर्मल सोती

प्रकृति ने हम सबको दिया
जीवन का अनुपम संदेश
आओ मिटाए मन की दूरी
दूर हटाये कष्ट कलेश !

रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

17 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया!!

Unknown said...

theek hi hai!!

sia said...

sia - very nice

Rashi said...

good 1

How r u said...

bahut aachi hai ossam !!!!!!!

Anonymous said...

nice poem....:)

Anonymous said...

very very good poem

Keshav said...

kya baat hai yaar

harsh lath said...

kya baat hai!
very ossam!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
very nice and beautiful!!........
is poem se aaj mere full marks aaye.

Unknown said...

nice poem ..........

Anonymous said...

दमदार कविता है

Anonymous said...

gud 1

Anonymous said...

THE BEST ONE

Anonymous said...

kammal h
thanxxxxxxxxx.....!!! it helped me a lot.....

Unknown said...

chalega par aur thoda accha hona chiea tha

Anonymous said...

NICE CAN DO BETTER

Anonymous said...

thanks this poem help me to won my hindi poem comp................!!!!!!!!!!!

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