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श्री गणेशाय नमः


Tuesday, May 26, 2009

कविता: तकलीफ

बस इतनी सी तकलीफ
मेरे दिल में मौजूद है
मेरे दिल तोड़ने वाला शख्स का
मेरे दिल में वजूद है !

अब तन्हाइयों बिना
जीने से डर लगता है
हर चेहरे में उसका बस
बस उसका अक्स दिखताहै !

खामोश लब झुकी निगाहें
इस बात का करती बयां है
बिना उसके मेरे लिए
क्या जमीं क्या आसमा !


-रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

2 comments:

Asha Joglekar said...

बहुत खूबसूरत ।

Unknown said...

Beatiful poem Are you a good person too like the expression of your poem?
Rama Mittal

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