बंद दरवाजे हों
या खुली खिड़कियाँ
हर समय बढती है
ज़िन्दगी से नजदीकियां
हो के बेवफा
वफ़ा का दम भरती है
गुमनाम गलियों में रहकर
हमेशा मशहूर रहती है
सब जानते हैं साथ
छोड़ देगी एक दिन
फिर भी वादा करती है
हर पल हर दिन
कभी आम है
कभी ख़ास है ज़िन्दगी
कडवे अनुभवों की
मिठास है ज़िन्दगी
आज है कल
नहीं रहेगी ज़िन्दगी
फिर भी बातों में
जिंदा रहेगी ज़िन्दगी
एक हमसफ़र है
राहेगुजर है ज़िन्दगी
खुदा से खूबसूरत
एहसास है ज़िन्दगी
लेखक: रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी
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