नवरात्र- नौ दिनों तक देवी उपासना का महापर्व है। गांव और शहरों में जगह जगह शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आकर्षक प्रतिमा भव्य पंडालों में स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। ग्राम देवी, देवी मंदिरों और ठाकुरदिया में जवारा बोई जाती है, मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है ॥ हजारों लीटर तेल और घी इसमें खप जाता है। लोगों का विश्वास है कि मनोकामना ज्योति जलाने से उनकी कामना पूरी होती है और उन्हें मानसिक शांति मिलती है। इस अवसर पर देवी मंदिरों तक आने-आने के लिए विशेष बस और ट्रेन चलायी जाती है। इसके बावजूद दर्शनार्थियों की अपार भीड़ सम्हाले नहीं सम्हलता, मेला जैसा दृश्य होता है। कहीं कहीं नवरात्र मेला लगता है। गांव में तो नौ दिनों तक धार्मिक उत्सव का माहौल होता है। शहरों में भी मनोरंजन के अनेक आयोजन होते हैं। कोलकाता और बिलासपुर का दुर्गा पूजा प्रसिद्ध है। दूर दूर से लोग यहां आते हैं। छत्तीसगढ़ में शिवोपासना के साथ शक्ति उपासना प्राचीन काल से प्रचलित है। कदाचित इसी कारण शिव भी शक्ति के बिना शव या निष्क्रिय बताये गये हैं। योनि पट्ट पर स्थापित शिवलिंग और अर्द्धनारीश्वर स्वरूप की कल्पना वास्तव में शिव-शक्ति या प्रकृति-पुरूष के समन्वय का परिचायक है। मनुष्य की शक्तियों को प्राप्त करने की इच्छा शक्ति ने शक्ति उपासना को व्यापक आयाम दिया है। मनुष्य के भीतर के अंधकार और अज्ञानता या पैशाचिक प्रवृत्तियों से स्वयं के निरंतर संघर्ष और उनके उपर विजय का संदेश छिपा है। परिणामस्वरूप दुर्गा, काली और महिषासुर मिर्दनी आदि देवियों की कल्पना की गयी जो भारतीय समाज के लिए अजस्र शक्ति की प्ररणास्रोत बनीं। शैव धर्म के प्रभाव में बृद्धि के बाद शक्ति की कल्पना को शिव की शक्ति उमा या पार्वती से जोड़ा गया और यह माना गया कि स्वयं उमा, पार्वती या अम्बा समय समय पर अलग अलग रूप ग्रहण करती हैं। शक्ति समुच्चय के विभिन्न रूपों में महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती प्रमुख बतायी गयी हैं। देवी माहात्म्य में महालक्ष्मी रूप में देवी को चतुर्भुजी या दशभुजी बताया गया है और उनके हाथों में त्रिशूल, खेटक, खड्ग, शक्ति, शंख, चक्र, धनुष तथा एक हाथ में वरद मुद्रा व्यक्त करने का उल्लेख मिलता है। देवी के वाहन के रूप में सिंह (दुर्गा, महिषमिर्दनी, उमा), गोधा (गौरी, पार्वती), पद्म (लक्ष्मी), हंस (सरस्वती), मयूर (कौमारी), प्रेत या शव (चामुण्डा) गर्दभ (शीतला) होते हैं। छत्तीसगढ़ में राजा-महाराजा और जमींदार देवी की प्रतिष्ठा अपने कुल देवी के रूप में कराया था जो आज शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। उनकी कुल देवियां उन्हें न केवल शक्ति प्रदान करती थीं बल्कि उनका पथ प्रदर्शन भी करती थी। छत्तीसगढ़ के राजा-महाराजा और जमींदारों की निष्ठा या तो रत्नपुर या फिर संबलपुर के शक्तिशाली महाराजा के प्रति थी। कदाचित् यही कारण है कि यहां या तो रत्नपुर की महामाया देवी या फिर संबरपुर की समलेश्वरी देवी विराजित हैं। कुछ स्थानीय देवियां भी हैं जैसे- सरगुजा की सरगुजहीन देवी, दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी देवी, कोसगढ़ की कोसगई देवी, अड़भार की अष्टभुजी देवी, चंद्रपुर की चंद्रहासिनी देवी प्रमुख है इसके अलावा डोंगरगढ़ की बमलेश्वरी देवी, कोरबा की सर्वमंगला, शिवरीनारायण की अन्नपूर्णा, खरौद की सौराइन दाई, केरा, पामगढ़ और दुर्ग की चण्डी देवी, बालोद की गंगा मैया, खल्लारी की खल्लाई देवी, खोखरा और मदनपुर की मनका दाई, मल्हार की डिडनेश्वरी देवी, जशपुर की काली माई, रायगढ़ की बुढ़ी माई, चैतुरगढ़ की महिषासुर मिर्दनी, रायपुर की बंजारी देवी शक्ति उपासना के केंद्र बने हुए हैं। अनेक स्थानों पर ``शक्ति चौरा`` भी बने हुए हैं। शाक्त परंपरा में आदि भवानी को मातृरूप में पूजने की सामाजिक मान्यता है। माताओं और कुंवारी कन्या का शाक्त धर्म में बहुत ऊंचा स्थान है। शादी-ब्याह जैसे मांगलिक अवसरों में देवी-देवताओं को आदरपूर्वक न्यौता देने के लिए देवालय यात्रा का विधान है। इसीप्रकार अकाल, महामारी, भुखमरी आदि को दैवीय प्रकोप मानकर उसकी शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। तत्कालीन साहित्य में ``बलि`` दिये जाने का उल्लेख मिलता है। आज भी कहीं कहीं पशु बलि दिया जाता है। बहरहाल, शक्ति संचय, असुर और नराधम प्रवृत्ति के लिए मां भवानी की उपासना और पूजा-अर्चना आवश्यक है। इससे सुख, शांति और समृिद्ध मिलती है। ऐसे ममतामयी मां भवानी को हमारा शत् शत् नमन..। या देवी सर्व भूतेषु, शक्तिरूपेण संस्थित:। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
--आलेख, लेखन एवं प्रस्तुति,
प्रो. अश्विनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनी, चांपा-495671 (छ.ग.)
श्री गणेशाय नमः
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Sunday, March 29, 2009
देवी उपासना का महापर्व नवरात्र
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व्रत और त्यौहार
Sunday, March 1, 2009
कविता : मस्ती, प्रेम, रंग, गुझिया का त्यौहार "होली"
बस कुछ ही दिन शेष है, रंगों के प्यारे के त्यौहार मे। रंग, पिचकारी, गुझिया, मस्ती का त्यौहार होली !!
प्रस्तुत है रवि केशरी जी कि कविता होली के सन्दर्भ मे-
प्रस्तुत है रवि केशरी जी कि कविता होली के सन्दर्भ मे-
रंग फुहारों से हर ओर
भींग रहा है घर आगंन
फागुन के ठंडे बयार से
थिरक रहा हर मानव मन !
लाल गुलाबी नीली पीली
खुशियाँ रंगों जैसे छायीं
ढोल मजीरे की तानों पर
बजे उमंगों की शहनाई !
गुझिया पापड़ पकवानों के
घर घर में लगते मेले
खाते गाते धूम मचाते
मन में खुशियों के फूल खिले !
रंग बिरंगी दुनिया में
हर कोई लगता एक समान
भेदभाव को दूर भागता
रंगों का यह मंगलगान !
पिचकारी के बौछारों से
चारो ओर छाई उमंग
खुशियों के सागर में डूबी
दुनिया में फैली प्रेम तरंग !
- रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी
Tuesday, October 21, 2008
छत्तीसगढ़ की पाँच दिवसीय दीपावली
छत्तीसगढ़ मै पाँच दिन तक चलने वाले इस त्यौहार का आरम्भ धनतेरस यानि धन्वन्तरी त्रयोदस से होता है । मान्यता है की इस दिन भगवान् धन्वन्तरी अपने हाँथ में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। समुद्र मंथन में जो चौदह रत्न निकले थे, भगवान् धन्वन्तरी उनमे से एक है। वे आरोग्य और समृद्धि के देव है । स्वास्थ्य और सफाई से इनका गहरा सम्बन्ध होता है। इसलिए इस दिन सभी अपने घरों की सफाई करते है और लक्ष्मी जी के आगमन की तयारी करतें है। इस दिन लोग यथाशक्ति सोना- चांदी और बर्तन इत्यादि खरीदते है।
दूसरे दिन कृष्ण चतुर्दशी होता है। इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण नरकासुर का वध करके, उनकी क़ैद से हजारों राजकुमारियों को मुक्ति दिलाकर उनके जीवन में उजाला किए थे। राजकुमारियों ने इस दिन दीपों की श्रृंख्ला जलाकर, अपने जीवन में खुशियों को समाहित किया था।
तीसरे दिन आता है दीपावली। दीपों का त्यौहार..... लक्ष्मी पूजन का त्यौहार। असत्य पर सत्य की, अन्धकार पर प्रकाश की, और अधर्म पर धर्म की विजय का त्यौहार है दीपावली। इस त्यौहार को मनाने के पीछे अनेक लोक मान्यताएं जुड़ी हुई है। भगवान् श्रीरामचंद्र जी के चौदह वर्ष बनवास काल की समाप्ति और अयोध्या आगमन पर उनके स्वागत में दीप जलाना, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस का इस दिन जन्म हुआ था और इसी दिन उन्होंने जल समाधि ली थी। अहिंसा की प्रतिमूर्ति और जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इसी दिन निर्वाण किया था। सिख धर्म के प्रवर्तक श्री गुरुनानक देव जी का जन्म इसी दिन हुआ था। इस सत्पुरुषों के उच्च आदर्शों और अमृतवाणी से हमे सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। इसी अमावास को भगवान् विष्णु जी ने धन की देवी लक्षी जी का वरण किया था। इसीलिए इस दिन सारा घर दीपों के प्रकाश से जगमगा उठता है। पटाखे और आतिशबाजी की गूँज उनके स्वागत में होती है। इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना करके प्रसन्न किया जाता है, और घर को श्री संपन्न करने की उनसे प्रार्थना की जाती है। :-
पाँचवे दिन आता है भाई दूज का पवित्र त्यौहार। यमराज के वरदान से बहन इस दिन अपने भाई का स्वागत करके मोक्ष की अधिकारी बनती है। पाँच दिन तक चलने वाले इस त्यौहार को लोग बड़े धूमधाम और आत्मीय ढंग से मनाते है।
यह सच है की दीपावली के आगमन से खर्च में बढोत्तरी हो जाती है और पाँच दिन तक मनाये जाने वाले इस त्यौहार के कारण आपका पाँच माह का बजट फेल हो जाता है। उचित तो यही होगा की आप इसे अपने बजट के अनुसार ही मनाएं । हर वर्ष आने वाला दीपावली अपने चक्र के अनुसार इस वर्ष भी आया है और भविष्य में भी आयेगा पर इससे घबराएँ नहीं और सादगीपूर्ण और सौहार्द के वातावरण में मनाएं । दूरदर्शिता से काम ले, इतनी फिजूलखर्ची ना करें की आपका दिवाला ही निकल जाए और ना ही इतनी कंजूसी करें की दीपावली का आनंद ही न मिल पाए..।
दूसरे दिन कृष्ण चतुर्दशी होता है। इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण नरकासुर का वध करके, उनकी क़ैद से हजारों राजकुमारियों को मुक्ति दिलाकर उनके जीवन में उजाला किए थे। राजकुमारियों ने इस दिन दीपों की श्रृंख्ला जलाकर, अपने जीवन में खुशियों को समाहित किया था।
तीसरे दिन आता है दीपावली। दीपों का त्यौहार..... लक्ष्मी पूजन का त्यौहार। असत्य पर सत्य की, अन्धकार पर प्रकाश की, और अधर्म पर धर्म की विजय का त्यौहार है दीपावली। इस त्यौहार को मनाने के पीछे अनेक लोक मान्यताएं जुड़ी हुई है। भगवान् श्रीरामचंद्र जी के चौदह वर्ष बनवास काल की समाप्ति और अयोध्या आगमन पर उनके स्वागत में दीप जलाना, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस का इस दिन जन्म हुआ था और इसी दिन उन्होंने जल समाधि ली थी। अहिंसा की प्रतिमूर्ति और जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इसी दिन निर्वाण किया था। सिख धर्म के प्रवर्तक श्री गुरुनानक देव जी का जन्म इसी दिन हुआ था। इस सत्पुरुषों के उच्च आदर्शों और अमृतवाणी से हमे सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। इसी अमावास को भगवान् विष्णु जी ने धन की देवी लक्षी जी का वरण किया था। इसीलिए इस दिन सारा घर दीपों के प्रकाश से जगमगा उठता है। पटाखे और आतिशबाजी की गूँज उनके स्वागत में होती है। इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा अर्चना करके प्रसन्न किया जाता है, और घर को श्री संपन्न करने की उनसे प्रार्थना की जाती है। :-
जय जय लक्षी ! हे रमे ! रम्य !
हे देवी ! सदय हो, शुभ वर दो !
प्रमुदित हो, सदा निवास करो
सुख संपत्ति से पूरित कर दो,
हे जननी ! पधारो भारत में
कटु कष्ट हरो, कल्याण करो
भर जावे कोषागार शीघ्र
दुर्भाग्य विवश जो है खाली
घर घर में जगमग दीप जले
आई है देखो दीपावली.... !
चौथे दिन आती है गोवर्धन पूजा। यह दिन छत्तीसगढ़ में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। मुंगेली क्षेत्र में इस दिन को पान बीडा कहतें है और अपने घरों में मिलने आए लोगों का स्वागत पान बीडा देकर करतें है। इस दिन गोबर्धन पहाड़ बनाकर उसमे श्रीकृष्ण और गोप गोपियाँ बनाकर उनकी पूजा की जाती है।हे देवी ! सदय हो, शुभ वर दो !
प्रमुदित हो, सदा निवास करो
सुख संपत्ति से पूरित कर दो,
हे जननी ! पधारो भारत में
कटु कष्ट हरो, कल्याण करो
भर जावे कोषागार शीघ्र
दुर्भाग्य विवश जो है खाली
घर घर में जगमग दीप जले
आई है देखो दीपावली.... !
पाँचवे दिन आता है भाई दूज का पवित्र त्यौहार। यमराज के वरदान से बहन इस दिन अपने भाई का स्वागत करके मोक्ष की अधिकारी बनती है। पाँच दिन तक चलने वाले इस त्यौहार को लोग बड़े धूमधाम और आत्मीय ढंग से मनाते है।
यह सच है की दीपावली के आगमन से खर्च में बढोत्तरी हो जाती है और पाँच दिन तक मनाये जाने वाले इस त्यौहार के कारण आपका पाँच माह का बजट फेल हो जाता है। उचित तो यही होगा की आप इसे अपने बजट के अनुसार ही मनाएं । हर वर्ष आने वाला दीपावली अपने चक्र के अनुसार इस वर्ष भी आया है और भविष्य में भी आयेगा पर इससे घबराएँ नहीं और सादगीपूर्ण और सौहार्द के वातावरण में मनाएं । दूरदर्शिता से काम ले, इतनी फिजूलखर्ची ना करें की आपका दिवाला ही निकल जाए और ना ही इतनी कंजूसी करें की दीपावली का आनंद ही न मिल पाए..।
हे दीप मालिके ! फैला दो आलोक
तिमिर सब मिट जाए
तिमिर सब मिट जाए
प्रो अश्विनी केशरवानी
राघव- डागा कालोनी - चंपा, (छत्तीसगढ़)
राघव- डागा कालोनी - चंपा, (छत्तीसगढ़)
Thursday, October 16, 2008
करवा चौथ: पति की लम्बी उम्र के लिए प्राचीन महत्वपूर्ण व्रत
कल पूरे भारत मे महिलाओं का एक महत्वपूर्ण व्रत करवा चौथ मनाया जाएगा। कार्तिक मॉस के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाये जानके कारण ही इसका नाम " करवा चौथ " हैं। यह व्रत अति प्राचीन है और कहा जाता है कि महाभारत के पूर्व भी इसका चलन था। सामान्य मान्यता के अनुसार सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग (पति) की दीर्घायु के लिए इस व्रत को रखती हैं। यह भी कहा जाता है पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी इस व्रत को किया था।
यह व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन स्त्रियाँ निराजल व्रत रहकर अपने पति की दीर्घायु होने की कामना करती है स्त्रियाँ चावल का ऐपन पीसकर दीवार पर करवा चौथ बनाती हैं जिसे वर कहतें है। इस करवा चौथ में पति के अनेक रूप बनाये जाते हैं तथा सुहाग की वस्तुएं जैसे चूड़ी, बिंदी, बिछुआ, मेहँदी और महावर आदि के साथ साथ दूध देने वाली गाय, करुआ बेचने वाली कुम्हारी, महावर लगाने वाली नाउन चूड़ी पहनाने वाली मनिहारिन, सात भाई और इनकी इकलौती बहन सूर्य, चंद्रमा, गौरा, पार्वती आदि देवी देवताओं के भी चित्र बनाये जाते है। बहुत सी स्त्रियाँ सामूहिक रूप से एकत्र होकर भी पूजा करती है और एक दूसरे को करवा देती हैं। स्त्रियाँ पूजा करने के बात रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अपने व्रत को तोड़ती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों मे करवा के एक दिन पूर्व सास अपनी बहू को 'सरगी' (सुहाग का समान कपड़े एवं मिठाई इत्यादी) देती है।
एक पति का अपनी पत्नी, बच्चे और परिवार की खुशहाली के लिए सुबह से शाम तक जुट कर काम करना और शाम को पत्नी का अपने पति के कंधे पर सर रखकर पति का स्नेह और प्रेम पाना एक सुखद एहसास देता है।
हिंदू धर्म मे जहाँ विवाह को एक पवित्र और सात जन्मो का बंधन माना गया है, वहीं पति और पत्नी के आजीवन एक दूसरे के साथ प्रेम, विश्वास और आपसी सहयोग के साथ जीने का वचन भी लिया जाता है। पत्नी पति की लम्बी उम्र के लिए कई तरह के व्रत और पूजन करती हैं। हिंदू धर्म मे छोटे छोटे व्रत और त्यौहार भरे पड़े है जो की पति पत्नी को एक सूत्र मे बाँधने मे मदद करतें है। इस कड़ी मे करवा चौथ एक महत्वपूर्ण व्रत का त्यौहार है।
यह व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन स्त्रियाँ निराजल व्रत रहकर अपने पति की दीर्घायु होने की कामना करती है स्त्रियाँ चावल का ऐपन पीसकर दीवार पर करवा चौथ बनाती हैं जिसे वर कहतें है। इस करवा चौथ में पति के अनेक रूप बनाये जाते हैं तथा सुहाग की वस्तुएं जैसे चूड़ी, बिंदी, बिछुआ, मेहँदी और महावर आदि के साथ साथ दूध देने वाली गाय, करुआ बेचने वाली कुम्हारी, महावर लगाने वाली नाउन चूड़ी पहनाने वाली मनिहारिन, सात भाई और इनकी इकलौती बहन सूर्य, चंद्रमा, गौरा, पार्वती आदि देवी देवताओं के भी चित्र बनाये जाते है। बहुत सी स्त्रियाँ सामूहिक रूप से एकत्र होकर भी पूजा करती है और एक दूसरे को करवा देती हैं। स्त्रियाँ पूजा करने के बात रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अपने व्रत को तोड़ती है।
उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों मे करवा के एक दिन पूर्व सास अपनी बहू को 'सरगी' (सुहाग का समान कपड़े एवं मिठाई इत्यादी) देती है।
एक पति का अपनी पत्नी, बच्चे और परिवार की खुशहाली के लिए सुबह से शाम तक जुट कर काम करना और शाम को पत्नी का अपने पति के कंधे पर सर रखकर पति का स्नेह और प्रेम पाना एक सुखद एहसास देता है।
हिंदू धर्म मे जहाँ विवाह को एक पवित्र और सात जन्मो का बंधन माना गया है, वहीं पति और पत्नी के आजीवन एक दूसरे के साथ प्रेम, विश्वास और आपसी सहयोग के साथ जीने का वचन भी लिया जाता है। पत्नी पति की लम्बी उम्र के लिए कई तरह के व्रत और पूजन करती हैं। हिंदू धर्म मे छोटे छोटे व्रत और त्यौहार भरे पड़े है जो की पति पत्नी को एक सूत्र मे बाँधने मे मदद करतें है। इस कड़ी मे करवा चौथ एक महत्वपूर्ण व्रत का त्यौहार है।
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