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श्री गणेशाय नमः


Thursday, September 9, 2010

Poem: Nanhe Kopal, कविता: नन्हे कोपल

कविता: नन्हे कोपल 

नन्हे कोपल पीपल के 
अलसाये इठलाये से 
उग आये हैं टहनी पे 
देखो तो शर्माए से !

सूरज की पीली किरणों का 
करें सामना ये डट के  
चले बसंती मस्त पवन जब 
लहराए ये हौले हौले से ! 

निस दिन बढ़ते रहते 
जैसे हों मद मस्त गज 
जड़ से जुड़े रहे हमेशा 
ले माथे पे धूलि रज !

एक दिन बन जायेगा देखो 
कोपल का इक नव इतिहास 
झंझावत से सदा जूझते 
नन्हे कोपल को शाबाश  !

लेखक: रवि प्रकाश केशरी, वाराणसी

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