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श्री गणेशाय नमः


Friday, December 4, 2009

कविता: मंदिर मस्जिद

कविता: मंदिर मस्जिद 

मंदिर के मुंडेर पर
बैठा एक कबूतर 
ताड़ रहा था सामने 
मस्जिद की छत को . 

मंदिर से मस्जिद की 
दूरी थी बस दस कदम 
एक तो सूरज की तपिश 
ऊपर से बाजू भी बेदम 

इन हालातों मै कुछ यूँ हुआ 
सामने से नन्हे फरीद ने 
मंदिर के छत की ओर कदम बढाए 
और कबूतर को हाथों में लिया. 

नन्हे फरीद ने धर्म की दीवार को 
मानवता से तोड़ दिया 
और कबूतर पर पास पड़े 
गंगाजल के कमंडल को उड़ेल दिया. 
 
--लेखक: रवि प्रकाश  केशरी 
वाराणसी 


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