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श्री गणेशाय नमः


Sunday, March 1, 2009

कविता : मस्ती, प्रेम, रंग, गुझिया का त्यौहार "होली"

बस कुछ ही दिन शेष है, रंगों के प्यारे के त्यौहार मे। रंग, पिचकारी, गुझिया, मस्ती का त्यौहार होली !!
प्रस्तुत है रवि केशरी जी कि कविता होली के सन्दर्भ मे-

रंग फुहारों से हर ओर

भींग रहा है घर आगंन

फागुन के ठंडे बयार से

थिरक रहा हर मानव मन !




लाल गुलाबी नीली पीली

खुशियाँ रंगों जैसे छायीं

ढोल मजीरे की तानों पर

बजे उमंगों की शहनाई !




गुझिया पापड़ पकवानों के

घर घर में लगते मेले

खाते गाते धूम मचाते

मन में खुशियों के फूल खिले !




रंग बिरंगी दुनिया में

हर कोई लगता एक समान

भेदभाव को दूर भागता

रंगों का यह मंगलगान !




पिचकारी के बौछारों से

चारो ओर छाई उमंग

खुशियों के सागर में डूबी

दुनिया में फैली प्रेम तरंग !



- रवि प्रकाश केशरी
वाराणसी

1 comment:

Anonymous said...

Thanks Ravi jee for your Holi geet. I have enjoyed it. Keep on writing good songs. - Yogendra Keshary
dnbypk@gmail.com

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